उत्तराखंड: कांग्रेस नहीं हरीश रावत से मुकाबला करेगी बीजेपी, 'चेहरों की लड़ाई' में कौन मारेगा बाजी?उत्तराखंड: कांग्रेस नहीं हरीश रावत से मुकाबला करेगी बीजेपी, 'चेहरों की लड़ाई' में कौन मारेगा बाजी? उत्तराखंड चुनाव में इस बार प्रत्याशियों से ज्यादा बड़े चेहरों पर जोर है. कांग्रेस की तरफ से मैदान में खड़े हैं हरीश रावत. वे अपने दम पर पूरी बीजेपी का पहाड़ी राज्य में सामना कर रहे हैं. कांग्रेस ने भी इस रणनीति को सहमति दे रखी है! देश के पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की राजनीति काफी उतार-चढ़ाव वाली रही है. यहां पर राष्ट्रवाद के नाम पर वोट पड़ जाते हैं, धर्म के नाम पर हार-जीत तय हो जाती है और कई मौकों पर सीटों पर सोशल इंजीनियरिंग ऐसी सेट की जाती है कि कोई पार्टी मैच को एकतरफा बना देती है. लेकिन इन सभी पहलुओं के अलावा उत्तराखंड में 'चेहरों की लड़ाई' निर्णायक साबित होती है. कई मौकों पर मुद्दों से ज्यादा जनता 'चेहरों' पर अपना विश्वास जताती है और उसी आधार पर उसका वोट तय हो जाता है. 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पीएम मोदी का चेहरा बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण रहा था. उन्हीं के नाम पर बिना कोई सीएम उम्मीदवार घोषित किए पार्टी ने 70 विधानसभा सीटों में से 57 पर जीत हासिल कर ली थी. अब 2022 का चुनाव दस्तक देने जा रहा है, इस बार भी ये चेहरों की लड़ाई निर्णायक साबित होने जा रही है!
राहुल-प्रियंका की कम रैलियां, उत्तराखंड में क्या इशारा?
इस चुनाव में बीजेपी सत्ता में आने के लिए पूरा दमखम लगा रही है. लेकिन उसकी सबसे बड़ी चुनौती है हरीश रावत से पार पाना. अब कहने को पहाड़ी राज्य में बीजेपी बनाम कांग्रेस का मुकाबला देखने को मिल रहा है. लेकिन कांग्रेस से ज्यादा ये मुकाबला हरीश रावत का बीजेपी के साथ दिख दिनों बाद उत्तराखंड में वोटिंग होने जा रही है, लेकिन अभी तक इस चुनाव में कांग्रेस हाईकमान सक्रिय नहीं दिखा है. पूरी जिम्मेदारी पूर्व सीएम हरीश रावत के कंधों पर है जो लगातार प्रचार भी कर रहे हैं और कई रैलियों को भी संबोधित कर रहे हैं. उनके अलावा मैदान में खड़े उम्मीदवार और कुछ दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री और पूर्व सीएम पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे है. लेकिन जैसा कांग्रेस पार्टी का स्टाइल रहा है, उसको देखते हुए चुनावी मौसम में हाईकमान का सबसे ज्यादा सक्रिय हो जाना आम रहता है. ज्यादातर रैली भी राहुल गांधी द्वारा होती दिख जाती हैं. एक तरीके से वे अपने ही चेहरे पर चुनाव लड़वा जाते हैं. लेकिन इस बार इससे बचा गया है. हरीश रावत पर हाईकमान ने भरोसा जताया है. लोकल लीडर हैं, लंबा अनुभव है और जमीन पर लोगों के बीच लोकप्रिय भी माने जाते हैं. ऐसे में इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हाईकमान जरूर थोड़ा पीछे खड़ा है, लेकिन हरीश रावत पूरी मजबूती के साथ बीजेपी का मुकाबला कर रहे हैं! अभी तक उत्तराखंड चुनाव में राहुल गांधी द्वारा पांच रैलियां संबोधित की गई हैं, वहीं प्रियंका गांधी ने भी तीन रैलियों के जरिए माहौल बनाया है. लेकिन जब तुलना 2017 से की जाती है तब राहुल गांधी ने पहाड़ी राज्य में 7 से 8 रैलियां संबोधित की थीं. ऐसे में इस बार पहाड़ी राज्य में उनकी उपस्थिति कम रही है लेकिन हरीश रावत की काफी ज्यादा बढ़ गई है!
प्रत्याशियों से ज्यादा बड़े नेताओं पर दांव
वैसे जिस रणनीति पर कांग्रेस काम कर रही है, वहीं काम उत्तराखंड में बीजेपी और आम आदमी पार्टी भी करती दिख रही है. इन दोनों दलों ने भी 'चेहरों की लड़ाई' को पूरी अहमियत दी है. एक तरफ बीजेपी के पास अगर सबसे युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी हैं तो दूसरी तरफ उनके सबसे लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी भी चुनावी मैदान में सक्रिय हैं. आम आदमी पार्टी भी पहली बार उत्तराखंड में चुनावी किस्मत आजमा रही है, लेकिन पार्टी का सारा
फोकस उनके सीएम उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल पर है. आप संयोजक अरविंद केजरीवाल भी कह गए कि जनता को एक फौजी को सेवा करने का मौका देना चाहिए. ऐसे में दोनों ही पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों से ज्यादा इन चेहरों पर दांव चला है. उम्मीद की जा रही कि इन चेहरों के दम पर ही प्रत्याशियों की सीट भी निकाल ली जाएगी. अब चुनावी मौसम में चेहरों की लड़ाई में असल में बाजी कौन मारता है, ये 10 मार्च को साफ हो जाएगा!