कश्मीर की प्रसिद्ध डल झील में पहली एंबुलेंस शिकारा (नाव) चलनी शुरू हो गई है. इस एंबुलेंस नांव की शुरूआत डल झील के पास ही रहने वाले एक शख्स ने की जो कुछ महीना पहले कोरोना की चपेट में आ गए थे.
एंबुलेंस शिकारा की पहल करने वाले तारीक अहमद का कहना हैं कि जब वह कोरोना संक्रमित हुए थे तो कोई उन्हें हाउसबोट से अस्पताल ले जाने के लिए राजी नहीं था. अस्पताल जाने के लिए भी तारीक अहमद को काफी परेशानिया झेलनी पड़ती जिसके बाद ही उन्होंने एंबुलेंस शिकारा तैयार करने का इरादा किया ताकि पीड़ित लोगों को दिक्कतों का सामना ना करना पड़े और उन्हे थोड़ी सहूलियत मिल सके जो डल झील के आसपास के इलाकों में रहते हैं.
डल में रहने वाले तारिक अहमद बताते हैं, 'जब मैंने कुछ महीने पहले टेस्ट में खुद को पॉजिटिव पाया गया था तो वह मेरे और मेरे परिवार के लिए एक कष्टदायक समय था. किसी ने भी मुझे झील पार करने में मदद नहीं की ताकि मैं अस्पताल जा सकूं. यही वजह है कि तब मैंने महसूस किया कि झील के लिए एक वैसी नाव का होना कितना आवश्यक था जिसमें मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध हों.'
तारिक अहमद को नाव बनाने में करीब एक महीने का समय लगा. उन्होंने इस शिकारे को बनाने में ज्यादातर लकड़ी की पारंपरिक सामग्री का इस्तेमाल किया है. वह इसमें मेडिकल इक्विपमेंट लगा रहे हैं. तारिक अहमद कहते हैं, 'यह झील में जरूरतमंद लोगों के लिए एक हेल्पलाइन की तरह होगी. इस शिकारे में एक फोन नंबर होगा जिस पर लोग कॉल कर सकते हैं और नाव उनकी मदद के लिए दौड़ पड़ेगी. हम इसमें मोटर भी लगा रहे हैं जिससे मदद के लिए समय पर पहुंचा जा सके.'
एंबुलेंस आपात स्थिति के दौरान लोगों को उचित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराएगी. तारिक अहमद कहते हैं कि उन्होंने ऐसी कई कहानियां सुनी हैं जहां इस तरह की मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण झील के आसपास रहने वाले लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है.
तारिक अहमद ने कहा, 'जैसा कि आप जानते हैं कि झील पर्यटकों के लिए भी एक शानदार जगह है, यह नाव उनके लिए भी उपयोगी साबित होगी. यदि वे बीमार पड़ते हैं तो उन्हें इलाज की आवश्यकता होती है. अब हम उन्हें इस सुविधा के माध्यम से समय पर उपचार मुहैया करा सकेंगे.'